अध्यात्म्य और साधना का केन्द्र भारत तीर्थो से भरा हुआ है, तीर्थ हमारी संस्कृति की धरोहर है, जिनालय हमारी आस्था के केन्द्र है, इसी भावना से युगादि में सर्वप्रथम भरत चक्रवर्ती ने कैलास पर्वत (अष्टापद) पर 72 जिनालय निर्मित कराये थे, जो काल दोष के कारण वर्तमान में सुलभ नहीं है।
अष्टापद तीर्थ जैन मन्दिर सुहावनी जलवायु, रमणीक वातावरण एवं खुले मैदान में स्थित स्वास्थ्य वर्धक क्षेत्र है जो दिल्ली – जयपुर N. H. 48 पर स्थित है।
परम पू० आचार्य श्री भरत सागर जी महाराज के मंगल आशीर्वाद से इस क्षेत्र का नाम अलंकरण किया । विशाल २७ फुट पदमासन कमलासन युक्त ३१ फुट ऊँचे स्तंभ पर २७ फुट क़ि प्रतिमा के साथ १५ फुट ऊँचीं भरत एवं बाहुबली की प्रतिमा के साथ 7 x 7 फुट के विशाल आदिनाथ के चरणों की प्रतिष्ठा परम पू० आचार्य धर्मसागर जी महाराज के शिष्य परम पु० बालयोगी अभीक्ष्णज्ञानोपयोगी मुनि श्री अमित सागर जी महाराज संसघ, आचार्य विमल सागर जी महाराज की शिष्या गणिनी आर्यिका स्याद्वादमति माता जी संसघ, आचार्य कल्प सन्मति सागर जी महाराज की शिष्य गणिनी आर्यिका चन्द्रमतिमाता जी संसघ, आचार्य देशभूषण जी महाराज की शिष्या क्षु० राजमतिमाता जी ब्र० रेखा दीदी के पावन सान्निध्य में प्रतिष्ठाचार्य ब्र० धर्मचंद शास्त्री के निर्देशानुसार अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिष्ठा २० अप्रैल २००८ में निविघ्न संपन्न हुई ।
इसी के साथ १७ फ़रवरी २०१० में मानस्तंभ की प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई। ४ मई २०१४ में सहस्त्र कूट जिनालय एवं चौबीसी की प्रतिष्ठा आचार्य वर्धमान सागर जी संसघ, आचार्य सुबल सागर जी ससंघ, मुनि श्री अमित सागर जी ससंघ, आर्यिका स्याद्वादमति माताजी ससंघ, और सुज्ञानश्री माताजी ससंघ, भट्टारक लक्ष्मीसेन कोल्हापुर आदि अनेकों त्यागी वृन्दो के सानिद्ध्य में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा निर्विघ्नं संपन्न हुई।
अष्टापद तीर्थ जैन मंदिर,
N.H. 48, दिल्ली – जयपुर हाइवे, विलासपुर चौक,
निकट पुराना टोल, गुरुग्राम ( हरियाणा ),
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